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Sunday 18 March 2012

"वो इक दिन"

 
यादों के उस मंज़र से मैंने, वो इक दिन दिल में संजो लिया है,
जिस दिन मुझे मिला था कारण ,जीवन अपना जीने का.......
 
तुमने ही अहसास कराया ,मेरा भी अस्तित्व है,
भूल गयी थी वरना मैं तो ,अहसास ही मेरे होने का.....
 
उन चंद लम्हों में जैसे, जी ली मैंने कई खुशियाँ हैं,
डर नहीं रहा मुझको जैसे,कुछ भी अब तो खोने  का.....
 
रहती हैं वो यादें जहाँ ,मन का वो इक कोना है,
करती रहती हूँ जतन अब हरदम , उस कोने को सजाने का......
 
जानती हूँ तुम्हारे लिए ये,एक अजनबी सी पाती है,
है बहाना मेरे लिए ये, अकेले बैठकर मुस्कुराने का......
 
यादों के उस मंज़र से मैंने, वो इक दिन दिल में संजो लिया है,
जिस दिन मुझे मिला था कारण,जीवन अपना जीने का.......
 
 
 
 
 
 

13 comments:

  1. बहुत खूब ...
    शुभकामनायें आपको !

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    1. धन्यवाद !!!!

      आभार
      मीनाक्षी

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  2. तुम्हारी पहली लाइन ने ही दिल जीत लिया...

    यादों के उस मंज़र से मैंने, वो इक दिन दिल में संजो लिया है,...

    बहुत सुन्दर मीनाक्षी..
    जियो.

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  3. सब आपके प्रोत्साहन के फलस्वरूप है....

    सराहना के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .... :)

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  4. Replies
    1. रहने दे आसमान, ज़मीन की तलाश कर, सब कुछ यहीं है, कहीं और ना तलाश कर हर आरज़ू पूरी हों, तो जीने का क्या मज़ा, जीने के लिए बस एक खुबसूरत वजह की तलाश कर.......

      thanx

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  5. रहने दे आसमान, ज़मीन की तलाश कर, सब कुछ यहीं है, कहीं और ना तलाश कर हर आरज़ू पूरी हों, तो जीने का क्या मज़ा, जीने के लिए बस एक खुबसूरत वजह की तलाश कर.......

    thanx... :))))

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  6. मीनाक्षी जी
    नमस्कार !
    ........बहुत खूब...बेहतरीन प्रस्तुति...
    ..........आज पहली बार आपको पढ़ा बेहतरीन कविता

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  7. उन चंद लम्हों में जैसे, जी ली मैंने कई खुशियाँ हैं,
    डर नहीं रहा मुझको जैसे,कुछ भी अब तो खोने का.....

    सच है ऐसे चंद लम्हे भी जीने के लिये अनमोल हो जाते है. अच्छी प्रस्तुति मीनाक्षी. तुम्हारा ब्लॉग भी मैंने ज्वाइन कर लिया है. शुभकामनायें.

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  8. धन्यवाद रचनाजी..... :)

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  9. क्या बात है! बहुत खूब! :)

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