Followers

Sunday 7 October 2012

"नाटक-नींद और मेरा रोज़"

 
 
रात से लेकर सुबह तक,जो रिश्ता है मेरा नींद से,
उसे थोडा बहुत निभाने की कोशिश करती हूँ.... रोज़...
कई बार झगडती हूँ नींद से मैं... रोज़...
समझाती है एक ही बात मुझे वो.... रोज़...
फिर मना ही लेती है आखिर नींद मुझे .... रोज़....

"नहीं मुझसे प्रीत तुझे तो बिसरा दे खयाल ये तू....की
सपने आएंगे इन आँखों में मीठे से !!
 
कुछ हसाएंगे कुछ शायद रुला भी जायेंगे....
पर क्या तू रह सकेगी उन सपनों के बिना ????
जो तुझे तेरे अपनों से मिला लाते हैं....
कभी-कभी परीलोक की सैर भी करा लाते हैं....
और कभी आकाश में स्वतंत्र विचरने का मौका देते हैं...
भूलाकर इस दुनिया के झंझट सारे तुझे अपनी एक अलग दुनिया में ले जाते हैं.... "

नहीं...!!
नहीं रह सकती उन सपनों के बिना मैं....!!
गले लगा ही लेती हूँ फिर नींद को.... रोज़...
और कहती हूँ क्यूँ सताती है तू मुझे.... रोज़....
आती नहीं है आँखों में नखरे हैं तेरे.... रोज़...
फिर मना ही लेती है आखिर नींद मुझे .... रोज़....

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर !!!!
    ♥♥♥

    sleep tight....
    :-)
    anu

    ReplyDelete
  2. बुजुर्गो ने कहा है कि जल्दी सोना चाहिए . सेहत भी ठीक और सीरत भी ठीक. अब सीरत यूँ कि जल्दी सोने पर सपनो कि लम्बाई बढ़ेगी , देर तक स्वप्न लोक में . परियों के देश में . आखिर परियों कि संगत का असर भी तो होगा न .

    ReplyDelete